Friday, 9 October 2015

जब सूरज शाम को ढलता है ,कोठी पर सब कुछ चलता है

हमारे देश में आज रिश्वत का बहुत जोर है ।भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है।जहाँ कहीं काम के लिए जाओ तो मुँह खुला हुआ मिलता है। रिश्वत तो जैसे हक़ बन चुका है। एक तरफ बड़े बड़े सकैम हो रहे हैं दूसरी तरफ गरीब जनता महंगाई में पिस रही है।आज से पचपन साल पहिले इतना बुरा हाल नहीं था छोटे मोटे गिफ्ट से ही काम निकल आता था। छोटी मोटी सिफारिश भी चल जाती थी।तब मैंने एक कविता लिखी थी जो मैंने 2013 में इसी ब्लॉग पर अंग्रेजी स्क्रिप्ट में अंग्रेजी अनुवाद के साथ छापी थी। आज वही कविता में हिंदी में छाप रही हूँ।कविता का शीर्षक है

जब सूरज शाम को ढलता है कोठी पर सब कुछ चलता है

दफ्तर को पहुंचे लेट हम
आगे ना था अफसर भी कम
हमारी चेकिंग हो गयी
हमसे क्या गलती हो गयी
अफसर हुआ खिलाफ क्यों
साथी से पूछा हमने यूँ
तुम ना आये सारा दिन
और वो भी अर्जी के बिन
मैं आया आधा घंटा लेट
क्यों बनने लगा मेरा आमलेट
कहने लगा सुन मेरे यार
होकर ज़रा तू होश्यार
साहिब की कोठी मैं गया
हाथ में डिब्बा लिया
मुन्ने को जा पकड़ा दिया
और कहा
कल आऊंगा कुछ देर से
जाना कहीं सवेर से
साहिब ने मौन धर लिया
हमने मुह माँगा वर लिया
तुमने चचा कुछ भी किया
आखिर मुन्ने को क्या दिया
वो ना रिश्वत लेते हैं
लेते केवल उपहार हैं
जो उनके मुन्ने को दीजिये
करते उसे स्वीकार हैं
जब सूरज शाम को ढलता है
कोठी पर सब कुछ चलता है

हमने भी राज़ पा लिया
दिल अपने को समझा लिया
रोज़ कोठी जाने लगे
साथियों का दिल हिलाने लगे
सोचा
मुन्ना तो अभी बच्चा है
मैडम का दिल भी अच्छा है
साड़ी का डिब्बा लिया
मैडम को जा पकड़ा दिया
मैडम ने डिब्बा धर लिया
हमने मुह माँगा वर लिया
क्लर्क से स्टेनो बन गए
झक मरते सब रह गए
मेरा दोस्त कहने लगा
सेनिओरिटी लिस्ट का क्या हुआ
हमने उसे समझा दिया
उसका कहा दोहरा दिया
जब सूरज शाम को ढलता है
कोठी पर सब कुछ चलता है

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